Monday, August 3, 2009

कौन है प्रोग्रेसिव, बताइए

प्रोग्रेसिव माइंड आखिर बला क्या है? सभ्यता-संस्कृति से इसका ताल्लुक क्या है? खबरिया चैनलों में आये दिन गे-कल्चर, पब-कल्चर, गर्ल फ्रेंड-बॉय फ्रेंड और गोत्र से जुडी लफ्फेबाजी सुनने को मिलती है. कोई खुद को नए युग का नुमाइंदा कहकर परिवर्तन विरोधियों की आलोचना करता है. तो कोई स्वयं को संस्कृति का पहरेदार बता समाजिक मर्यादाओं कि पैरोकारी करता है. वैसे दार्शनिक रूसो ने लिखा है कि "मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है. स्वाभाविक प्रसन्नता एवं सुख के लिए उसे उन सभी संस्थओं को नष्ट कर देना चाहिए जो उन्हें जकडे हुए है." दूसरी ओर महान आस्ट्रियाई चांसलर मेटेर्निक का कहना था कि " जो जैसा है वैसा रहने दो. परिवर्तन तो पागलपन है. हमारा वर्तमान समाज कई हजार वर्षों कि प्रगतिशीलता का नतीजा है ओर कई वर्षों से ऐसे ही है." इन दोनों के विचारों के लाखों समर्थक मिल जायेंगे. पर दोनों में प्रोग्रेसिव कौन है कहना मुश्किल है. मैंने भी प्रोग्रेसिव माइंड बला पर विचार किया.


कुछ दिन पहले किसी चैनल पर गे-कपल के शादी की खबर सुनी थी। दोनों मर्द खुश दिख रहे थे. प्रोग्रेसिवों की जमात जश्न मनाने में तल्लीन थी. इस तस्वीर के पीछे एक और तस्वीर छिपी थी. उस तस्वीर में इन दोनों मर्दों के परिजनों का रुआंसा चेहरा था. उस चेहरे में वो दुःख और शर्म साफ़ दिख रही थी जो उन्हें उनके अपने खून ने दी थी. प्रोग्रेसिवों का तर्क मर्द-मर्द राजी तो क्या करेगा काजी के सिद्धांत पर आधारित था. वहीँ उनके परिजन सामने आने से भी कतरा रहे थे. शायद वे स्वयं को उस मर्यादा के टूटने का दोषी मान रहे थे जिसे कभी हमारे प्रोग्रेसिव सोच वाले पुरखों ने बनाया होगा. निश्चय ही इस मर्यादा के टूटने से बहुमत के ह्रदय पर ही चोट लगी होगी.


हरियाणा में चल रहे ताजातरीन गोत्र विवाद से शायद "प्रोग्रेसिव माइंड" की धारणा स्पष्ट हो सके? हिन्दू समाज में सगोत्रीय विवाह वर्जित है। पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में ही में समझ गया था की हरियाणा में गोत्र की जड़े अग्नि-3 मिसाइल की कुल मारक क्षमता से भी अधिक गहरी है। "गोत्र सिद्धान्त" की रक्षा का भार खापों ने संभाल रखा है. खाप की कार्यप्रणाली होती तो तानाशाही हैं, लेकिन उनका आधार लोगों का अपार जनसमर्थन है. प्रोग्रेसिव समाज में लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ट राजनीतिक व्यवस्था मन जाता है. लोकतंत्र का आधार भी बहुमत है. जब दोनों का बेस पब्लिक है तो दोनों में प्रोग्रेसिव कौन है?


लिव-इन सिस्टम भी प्रोग्रेसिव माइंड की नई उपज है। जब तक लड़का-लड़की में सहमति है वे बगैर शादी के साथ रह सकते हैं. पैदा होने वाले बच्चे को भी कानूनी मान्यता(महाराष्ट्र में) है तो शादी की क्या जरूरत है. बड़े-बड़े महात्माओ ने कहा है की स्वयं को बंधन मुक्त करों? यदि विवाह संस्था टूटती है तो टूटे, ऐसे लोग आधुनिक समाज में इज्जत के साथ रहते हैं. वहीँ दूसरी और सामूहिकता के सिद्धांत में यकीन रखने वाले लोग इसे बुरी निगाहों से देखते हैं. उनका तर्क है की लिव-इन सिस्टम एकांगी है जबकि विवाह संस्था है, जिसमे कई लोग जुड़े होते हैं. अब दोनों में कौन प्रोग्रेसिव है, मै नहीं जानता?


मेरे एक करीबी मित्र ने फ़िल्मी अंदाज में मंदिर जाकर अपनी प्रेमिका से शादी कर ली। मित्र महोदय का विचार था की एक बार शादी हो जाने के बाद परिजनों की ना-नुकुर सब बंद हो जायेगा और उनके रिश्ते को दोनों पक्ष स्वाकार कर लेंगे. जैसा की कई मसालेदार मुम्बईया फिल्मों में होता रहा है. पर उनका अनुमान गलत निकला. दोनों पक्ष के परिजन, भाई-बन्धु सभी नाराज है. उनके दबाव में दोनों ने अलग रहने का फैसला किया. हालाँकि दोनों अभी-भी रिश्ते की डोर में बंधे हुए हैं. मित्र मण्डली में अधिकांश की सहानभूति "प्रोग्रेसिव" कदम उठाने वाले दोस्त के साथ है. लेकिन कुछ कहते हैं ऐसे रिश्ते का क्या फायदा जिसमे कोई खुश न हो. लेकिन भइया ये तो प्रेम-प्रसंग का मामला है. प्रेम के लिए पृथवीराज चौहान ने सयोंगिता हरण प्रकरण में अपने हजारों वीर सैनिकों को कुर्बान करना स्वीकार कर लिया था.


प्रश्न गंभीर है. दोनों के अपने तर्क है. इतने मंथन के बाद मै सिर्फ इतना समझ पाया हूँ कि जिस सोच से कम से कम लोगों को दुःख हो और जिस कृत्य से अधिक से अधिक लोग प्रसन्न हों (जिसमे आप भी शामिल हों.) वही प्रोग्रेसिव है. वैसे कैम्ब्रिज-ऑक्सफोर्ड से पढ़े लिखों की जमात में संस्कृति-सभ्यता-संस्कार की बात करना भी "पाखंड" की श्रेणी में आता है. हमारे महानगरों का बहुमत उन्ही से प्रभावित है. सो, उनके बीच मै सभ्यता-संस्कृति-संस्कार की बात करने की जुर्रत भी नहीं कर सकता. अब आप ही बताईये प्रोग्रेसिव माइंड आखिर बला क्या है.

4 comments:

  1. sach ka bayaan aur mukammal aalekh
    aise lekhan ka swaagat hai
    patanonmukhi tathakathit progresivon k liye ek sabak !
    badhaai !

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  2. हमारे भी समझ नहीं आया ..!!

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  3. why confused in between progressive and pakhand?
    Even NASA is accepting the core values of our
    सभ्यता-संस्कृति-संस्कार..
    now the people who considered themselves as civilized cannot understand the utmost inner meaning of PROGRESS..

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  4. इस शब्द के जितने मायने ढूँढने चाहे मिल जायेंगे, बस सब के सब परिस्थिति-सापेक्ष हैं. आलेख अच्छा है बधाई.

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