Tuesday, August 4, 2009

अशोक के शिलालेख से.

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता बेहद समृद्ध है. पॉँच हजार साल के इतिहास में वर्तमान के लिए अनेक सबक है. इस दौरान हमारे पूर्वज विभिन्न स्थितियों और समस्यायों से रूबरू हुए. समस्यायों के समाधान पर गंभीर मंथन किया और विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया. वर्तमान में ऐसी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान अतीत की धरोहरों में छिपा हुआ है. आर्यावर्त के महानतम सम्राट अशोक के शिलालेखों में अनेक गूढ़ सन्देश छिपे हैं. ये सन्देश ईसा से २३० साल पहले भारत के विभिन्न हिस्सों में पत्थरों पर खुदवाये गए थे. कई मायनो में ये सन्देश दुनिया के आधुनिकतम मानवतावादी विचारधारा से अधिक विकसित है. भारत के अति उदारवादी संविधान पर भी इसका व्यापक प्रभाव है.

पहले बृहद शिलालेख में अशोक ने पशु वध और समारोहों पर होने वाले अनावश्यक खर्च की निंदा की है.

दूसरे शिलालेख में प्राणिमात्र (पशुओं सहित) के लिए हॉस्पिटल खोलने का उल्लेख है. पेयजल और वृक्षारोपन को विशेष प्राथमिकता दी गयी है.

तीसरे शिलालेख में धन को सोच समझकर खर्च करने की नसीहत है. साथ ही बडों के संग आदरपूर्वक,नम्रतापूर्ण व्यवहार करने का सन्देश है.

सातवें शिलालेख में अशोक ने निर्देश दिया है की सभी सम्प्रदायों के लोग सभी स्थानों पर रह सकते हैं. इसमें सह-अस्तित्व की मीठी सुगंध मिलती है .


उस समय जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, आजीवक, अक्रियावादी एवं भौतिकवादी मतों के बीच बराबर टकराव होता रहता था. अशोक इन टकरावों से परेशान रहता था. अतः बारहवे शिलालेख में उसने वाक्संयम पर जोर दिया. इसके अनुसार नागरिक एक-दूसरे संप्रदाय के बारे में जानकारी हासिल करना चाहिए. सभी धर्मों के मूल में शांति-और प्रेम का सरस सन्देश छिपा हुआ है. और एक दूसरे के सम्प्रदायों की आलोचना करने से भी बचना चाहिए. इस उपाय के जरिये उसने साम्प्रदायिकता पर नियंत्रण स्थापित किया था.

अशोक ने मृत्युदंड की सजा प्राप्त अपराधी के प्रति भी एक सृजनात्मक दृष्टिकोण रखा. सजा से तीन दिन पहले अपराधी को रिहा कर दिया जाता था. ताकि वह अपने परिजनों से मिल सके. इस दौरान वह अपनी सजा माफ़ करवाने के लिए "रज्जुक" नामक अधिकारी से गुहार लगा सकता था. मृत्युदंड प्राप्त अपराधी के परिजनों को राज्य की और से आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई जाती थी.

Monday, August 3, 2009

कौन है प्रोग्रेसिव, बताइए

प्रोग्रेसिव माइंड आखिर बला क्या है? सभ्यता-संस्कृति से इसका ताल्लुक क्या है? खबरिया चैनलों में आये दिन गे-कल्चर, पब-कल्चर, गर्ल फ्रेंड-बॉय फ्रेंड और गोत्र से जुडी लफ्फेबाजी सुनने को मिलती है. कोई खुद को नए युग का नुमाइंदा कहकर परिवर्तन विरोधियों की आलोचना करता है. तो कोई स्वयं को संस्कृति का पहरेदार बता समाजिक मर्यादाओं कि पैरोकारी करता है. वैसे दार्शनिक रूसो ने लिखा है कि "मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है. स्वाभाविक प्रसन्नता एवं सुख के लिए उसे उन सभी संस्थओं को नष्ट कर देना चाहिए जो उन्हें जकडे हुए है." दूसरी ओर महान आस्ट्रियाई चांसलर मेटेर्निक का कहना था कि " जो जैसा है वैसा रहने दो. परिवर्तन तो पागलपन है. हमारा वर्तमान समाज कई हजार वर्षों कि प्रगतिशीलता का नतीजा है ओर कई वर्षों से ऐसे ही है." इन दोनों के विचारों के लाखों समर्थक मिल जायेंगे. पर दोनों में प्रोग्रेसिव कौन है कहना मुश्किल है. मैंने भी प्रोग्रेसिव माइंड बला पर विचार किया.


कुछ दिन पहले किसी चैनल पर गे-कपल के शादी की खबर सुनी थी। दोनों मर्द खुश दिख रहे थे. प्रोग्रेसिवों की जमात जश्न मनाने में तल्लीन थी. इस तस्वीर के पीछे एक और तस्वीर छिपी थी. उस तस्वीर में इन दोनों मर्दों के परिजनों का रुआंसा चेहरा था. उस चेहरे में वो दुःख और शर्म साफ़ दिख रही थी जो उन्हें उनके अपने खून ने दी थी. प्रोग्रेसिवों का तर्क मर्द-मर्द राजी तो क्या करेगा काजी के सिद्धांत पर आधारित था. वहीँ उनके परिजन सामने आने से भी कतरा रहे थे. शायद वे स्वयं को उस मर्यादा के टूटने का दोषी मान रहे थे जिसे कभी हमारे प्रोग्रेसिव सोच वाले पुरखों ने बनाया होगा. निश्चय ही इस मर्यादा के टूटने से बहुमत के ह्रदय पर ही चोट लगी होगी.


हरियाणा में चल रहे ताजातरीन गोत्र विवाद से शायद "प्रोग्रेसिव माइंड" की धारणा स्पष्ट हो सके? हिन्दू समाज में सगोत्रीय विवाह वर्जित है। पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में ही में समझ गया था की हरियाणा में गोत्र की जड़े अग्नि-3 मिसाइल की कुल मारक क्षमता से भी अधिक गहरी है। "गोत्र सिद्धान्त" की रक्षा का भार खापों ने संभाल रखा है. खाप की कार्यप्रणाली होती तो तानाशाही हैं, लेकिन उनका आधार लोगों का अपार जनसमर्थन है. प्रोग्रेसिव समाज में लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ट राजनीतिक व्यवस्था मन जाता है. लोकतंत्र का आधार भी बहुमत है. जब दोनों का बेस पब्लिक है तो दोनों में प्रोग्रेसिव कौन है?


लिव-इन सिस्टम भी प्रोग्रेसिव माइंड की नई उपज है। जब तक लड़का-लड़की में सहमति है वे बगैर शादी के साथ रह सकते हैं. पैदा होने वाले बच्चे को भी कानूनी मान्यता(महाराष्ट्र में) है तो शादी की क्या जरूरत है. बड़े-बड़े महात्माओ ने कहा है की स्वयं को बंधन मुक्त करों? यदि विवाह संस्था टूटती है तो टूटे, ऐसे लोग आधुनिक समाज में इज्जत के साथ रहते हैं. वहीँ दूसरी और सामूहिकता के सिद्धांत में यकीन रखने वाले लोग इसे बुरी निगाहों से देखते हैं. उनका तर्क है की लिव-इन सिस्टम एकांगी है जबकि विवाह संस्था है, जिसमे कई लोग जुड़े होते हैं. अब दोनों में कौन प्रोग्रेसिव है, मै नहीं जानता?


मेरे एक करीबी मित्र ने फ़िल्मी अंदाज में मंदिर जाकर अपनी प्रेमिका से शादी कर ली। मित्र महोदय का विचार था की एक बार शादी हो जाने के बाद परिजनों की ना-नुकुर सब बंद हो जायेगा और उनके रिश्ते को दोनों पक्ष स्वाकार कर लेंगे. जैसा की कई मसालेदार मुम्बईया फिल्मों में होता रहा है. पर उनका अनुमान गलत निकला. दोनों पक्ष के परिजन, भाई-बन्धु सभी नाराज है. उनके दबाव में दोनों ने अलग रहने का फैसला किया. हालाँकि दोनों अभी-भी रिश्ते की डोर में बंधे हुए हैं. मित्र मण्डली में अधिकांश की सहानभूति "प्रोग्रेसिव" कदम उठाने वाले दोस्त के साथ है. लेकिन कुछ कहते हैं ऐसे रिश्ते का क्या फायदा जिसमे कोई खुश न हो. लेकिन भइया ये तो प्रेम-प्रसंग का मामला है. प्रेम के लिए पृथवीराज चौहान ने सयोंगिता हरण प्रकरण में अपने हजारों वीर सैनिकों को कुर्बान करना स्वीकार कर लिया था.


प्रश्न गंभीर है. दोनों के अपने तर्क है. इतने मंथन के बाद मै सिर्फ इतना समझ पाया हूँ कि जिस सोच से कम से कम लोगों को दुःख हो और जिस कृत्य से अधिक से अधिक लोग प्रसन्न हों (जिसमे आप भी शामिल हों.) वही प्रोग्रेसिव है. वैसे कैम्ब्रिज-ऑक्सफोर्ड से पढ़े लिखों की जमात में संस्कृति-सभ्यता-संस्कार की बात करना भी "पाखंड" की श्रेणी में आता है. हमारे महानगरों का बहुमत उन्ही से प्रभावित है. सो, उनके बीच मै सभ्यता-संस्कृति-संस्कार की बात करने की जुर्रत भी नहीं कर सकता. अब आप ही बताईये प्रोग्रेसिव माइंड आखिर बला क्या है.

Thursday, July 30, 2009

यह हार नहीं जीत है

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

बलूचिस्तान का नाम आते ही जेहन में दो तस्वीर उभर कर आती है. इनमे से एक में पाकिस्तानी सैनिको ने कुछ बलूचियों के सर को अपने बूट के नीचे बड़ी निर्ममता से दबा रखा था. दूसरी तस्वीर में कलात के खान बुगती का शव की है. इस तस्वीर में मौजूद कुछ बलूची नवयुवकों की आँखों में पाकिस्तानी सैनिकों के प्रति उनका गुस्सा साफ़ झलक रहा था. इन दोनों तस्वीरों को कुछ साल पहले इन्टरनेट पर देखा था।


बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सरहदी सूबा है. पाकिस्तान के इस सबसे बड़े राज्य की सीमा ईरान और अफगानिस्तान को छूती है.पाकिस्तान में बलूचियों की आबादी महज ६.५ मिलियन है, जो कि सिन्धी और पंजाबी मुस्लिमों के मुकाबले काफी कम है. हालाँकि ईरान में इनकी अच्छी खासी तादाद मौजूद हैं . बलूची आम तौर पर कबीलाई जीवन शैली में रचे-बसे होते हैं और किसी दूसरी कौम की सरपरस्ती पसंद नहीं करते हैं. शायद यही वजह थी कि जब हिंदुस्तान के बटवारे की बात चल रही थी, तब कलात के खान ने बलूची जनमानस की नुमाइंदगी करते हुए बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने से साफ़ इनकार कर दिया था. यह पाकिस्तान के लिए असहनीय स्थिति थी. मुस्लिम बहुल बलूचिस्तान के सबसे बड़े नेता कलात के खान ने पाकिस्तान के सिद्धांत पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया था. अंततः पाकिस्तान ने सैनिक कार्यवाही कर जबरन बलूचिस्तान का विलय कर लिया।


१९४८ से ही कलात के खान के नेतृत्व में बलूचिस्तान की जंगे-आजादी शुरू हुई। हालाँकि बन्दूक के भय से उस वक्त इस संघर्ष को पर्याप्त जनसमर्थन नहीं मिला। लिहाजा अधिकांश अलगाववादी नेता ब्रिटेन और अमेरिका चले गए। धीरे-धीरे पंजाबी-सिन्धी पाकिस्तानी शासकों ने बलूचिस्तान की अनदेखी करनी शुरू कर दी। इन हुकुमरानों की नीतियों से शासन-प्रशासन में बलूचियों का हिस्सा कम होने लगा. बलूचिस्तान में चलने वाले सरकारी प्रोजेक्टों में भी स्थानीय नागरिकों की बजाय पंजाबी और सिंधियों को प्राथमिकता मिलने लगी. स्वतंत्रता प्रिय बलूचियों को यह बात असहनीय प्रतीत होने लगी. धीरे-धीरे वहां आजादी की जंग को समर्थन मिलने लगा. नब्बे के दशक में बलूचियों ने अपने मातृभूमि में पाकिस्तानी सरकार के कई ठिकानो पर हमला किया. इन हमलों में बड़ी संख्या में पंजाबी-सिन्धी पाकिस्तानी मारे गए. चीन की सहायता से ग्वादर में बन रहा पाकिस्तानी बंदरगाह भी इनसे बच नहीं सका. यहाँ हुए हमले कई चीनी इंजीनियर मारे गए. इसके बाद पाकिस्तानी अथारिटी ने यहाँ विद्रोह दबाने के लिए बड़े पैमाने पर सैनिक अभियान चलाया. २००६ में बलूचिस्तान की जंगे आजादी को बड़ा झटका लगा. पाकिस्तानी सैनिको की कार्यवाई में कलात के खान बुगाटी शहीद हो गए और हजारों की तादाद में बलूची मुजाहिदीनों को मौत के घाट उतर दिया गया. बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का हनन हुआ.


भारत के लिए बलूचिस्तान में हो रही घटनाओं का खासा महत्व है। सबसे बड़े दुश्मन देश का सबसे बड़ा प्रान्त है. पाकिस्तान का परमाणु परीक्षण स्थल भी चगताई की पहाडियों में है. यहाँ चीन की मौजूदगी भारतीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान भारत-ईरान गैस पाइप लाइन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. इसकी सरहद अफगानिस्तान को छूती है, जहाँ नाटो के सैनिक तैनात है. तालिबानी खतरा भी सर उठाये खडा है. ऐसे में भारत बलोचिस्तान में हो रही घटनाओं की अनदेखी नहीं कर सकता है. वैसे हिन्दुओं का प्रसिद्ध शक्तिस्थल 'हिंगलाज माता ' भी इसी सूबे में है. क्वेटा के इर्द-गिर्द रहने वाले थोड़े बहुत हिन्दू पाकिस्तानी सैनिको द्वारा बराबर उत्पीडित किये जाते हैं.
अभी हाल ही में शर्म-अल-शैख़ में मनमोहन सिंह और गिलानी ने संयुक्त बयान जारी किया है। बयान में बलूचिस्तान का भी जिक्र है. वहां हो रही घटनाओ पर खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान पर दोनों देशों में सहमति बनी है. यह बयान स्पष्ट करता है की पाकिस्तान बलूचिस्तान की घटनाओ पर काबू करने में अकेले सक्षम नहीं है. उसे अपनी सरजमी की रक्षा के लिए भारत की सहायता चाहिए. अर्थात वह अपने अन्दुरुनी मामलों में दखल देने का मौका भारत को देना चाहता है. भारत को इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिए. जिस तर्ज पर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को हर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उठाता है, ठीक उसी तर्ज पर भारत को बलूचियों की समस्या को प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उठाना चाहिए. इस घोषणा पत्र के जारी होने के बाद दुनियाभर में फैले अलगाववादी बलूची नेताओ ने जश्न मनाया. इन नेताओ ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बलूची समस्या को उठाने का न्योता भी दिया। भारत किसी भी मुल्क के अन्दुरुनी मसले में हस्तक्षेप करने में दिलचस्पी नहीं लेता, लेकिन पाकिस्तान ने शर्म -अल-शैख़ के जरिये उसे अपने घरेलू मामलों में बोलने का अधिकार दे दिया है. यह भारतीय कूटनीति की एक बड़ी कामयाबी है.


बलूचिस्तानी घटनाओं में भारत का हाथ होने का पाकिस्तानी आरोप है। यह आरोप उतना ही बड़ा झूठ है जितना बड़ा सफल राष्ट्र होने का पाकिस्तानी दंभ. वहां कुछ हथियार मेड इन इंडिया जरूर मिले हैं, लेकिन पाकिस्तान यह साबित करने में विफल रहा कि इन हथियारों को भारत ने बलूची आजादी के सिपाहियों को मुहैया कराया है. वस्तुतः हथियारों कि तस्करी आम बात है. बलूची क्रांतिकारियों ने तस्करी के जरिये ही इन हथियारों कि खरीद-फरोख्त की होगी. बलूची मूवमेंट की फंडिंग में भी भारतीय हाथ साबित करना नामुमकिन हैं. क्योंकि बलूची मूवमेंट को दुनिया भर में फैले बलूचियों की सहानभूति प्राप्त है और ईरानी बलूची ही मुख्य तौर पर धन उपलब्ध कराते हैं. पाकिस्तान ने हेरात, ईरान में स्थित भारतीय व्यापारिक दूतावास पर भी बलूची मुजाहिदीनों को ट्रेनिंग देने का आरोप लगाया है लेकिन साबित कुछ भी नहीं कर सका है और न ही कभी कर पाएंगे. क्योंकि भारत इस तरह की हरकतों में यकीन नहीं रखता है.


पाकिस्तानी हुकुमरानों की आदत सी हो गयी है कि वे अपने देश में होने वाली प्रत्येक हिंसक घटना के लिए भारतीय खुफिया एजेन्सी 'रा' को जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जिम्मेदारियों से निजात पाने की कोशिश करते है. पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया. इसके लिए भी पाकिस्तानी हुकुमरान अपने सैनिको द्वारा बांग्लादेशियों पर किये गए अत्याचार को नहीं बल्कि भारत को जिम्मेदार मानते हैं. अब बलूचिस्तान भी बांग्लादेश की राह पर अग्रसर है. और पाकिस्तानी हुकुमरान फिर वही गलतियाँ दोहराते जा रहे हैं.

Friday, July 17, 2009

...दाल के लिए तरसे बृहस्पति देव

महंगाई से सिर्फ हम मानवों की परेशानी नहीं बढ़ी है, वरन देवता भी आजकल आधे पेट भोजन पा रहे है. अनादि काल से धरती के मनुष्य यज्ञादि पूजन द्वारा देवताओं को भोग लगाते रहें हैं. लेकिन इस महंगाई से यज्ञादि पूजन का खर्च लोगों की बजट से बाहर हो चला है. लिहाजा देवताओं को मिलने वाले आहार में कमी आ गयी है और उनकी शक्ति भी इन दिनों घटने लगी है. पर संकट में भक्त अपने इष्ट को ही याद करता है. अतः देवताओं के पास भक्तों की फरियाद पर फरियाद आ रही है. कोई जरूरी समानों के भाव कम करने की प्रार्थना करता तो कोई बढ़ती कीमतों का सामना करने के लिए इनकम बढ़ाने की याचना अपने-अपने इष्ट देव से करता. देवता इन प्रार्थना पत्रों से आजिज आ चुके थे. अंततः इस विकट समस्या के समाधान के लिए सृष्टिकर्ता ब्रह्म, पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता महेश से विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया गया. चूँकि समस्या पृथ्वी की थी अतः बैठक स्थल शिवधाम कैलाश मानसरोवर तय किया गया.





नियत समय पर सभी देवता कैलाश मानसरोवर पहुंचे। मंच पर त्रिदेव विराजमान, बाकि देवता नीचे अपना कद के अनुसार उचित आसन पर बैठे थे. त्रिदेवों ने एक स्वर से पूछा 'हे इन्द्र! आखिर ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी है जिसका समाधान तुम्हारे पास नहीं है.' इन्द्र ने कहा 'हे त्रिदेवों! कुछ हजार साल पहले पृथ्वी पर महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने पृथ्वी पर हमला कर मेरे भक्तों का बुरा हाल किया था. मेरे भक्तों की परेशानी इस कदर बढ़ गयी थी की वे अपने इष्ट की पूजन सामग्री तक नहीं खरीद पा रहे थे. हवन आदि आहारों की अनुपस्थिति में मेरी शक्ति धीरे-धीरे समाप्त होती गयी और मै अपने भक्तों की रक्षा न कर सका.' इन्द्र की आवाज में रुदन स्पष्ट झलक रहा था. इन्द्र ने करुण स्वर से कहा, 'हे महादेवों! मेरी इस गति से भक्तों का विश्वास मुझसे उठ गया और आज मेरा एक भी भक्त इस मृत्युलोक पर नहीं है. आज फिर उसी महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने इस लोक के भ्रष्ट नेताओं, नकारा नौकरशाहों और रिटेल व्यापारिक घरानों के साथ मिलकर शेष बचे देवताओं को नष्ट करने का षडयंत्र रचा है.' स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है.'





तभी बृहस्पति देव उठ खड़े हुए। उन्होंने याचना भरे स्वरों में कहा 'हे महादेवों! देवराज उचित ही कह रहें हैं. हवन आहुति, फल-फूल से ही हम देवों को शक्ति मिलती है. तीन साल पहले स्थिति इतनी विकट न थी. भक्तगण मेरी कृपा प्राप्त करने के लिए मुझे पीली दाल, गुण सहित कई वस्तुओं की भोग लगाते थे. आजकल थोडा बहुत गुण तो मिल जाता, लेकिन दाल के दर्शन अति दुर्लभ हो गया है. मैंने अपने स्तर से पता लगवाया. पता चला दाल ८० रूपये किलों और गुण भी ४८ रूपए किलों बिक रहा है. जबकि तीन साल पहले ये वस्तुएं ४० रुपये और ३० रुपये किलों मिलती थी. मेरे भक्तों की थाली में भी अब दाल बड़ी मुश्किल से दिखती है. जब से चढावे में कमी आयी है तब से मुझे भी अपनी शक्ति जाती हुयी महसूस हो रही है.' यह कहते कहते वो अचेत से हो गए. तभी सभी देवताओं ने एक स्वर से त्राहिमाम-त्राहिमाम का स्वर गुंजित किया और बड़ी आस भरी निगाहों से त्रिदेवों की और देखने लगे.





त्रिदेव अभी विचार करते, उससे पहले ही पुराणिक पत्रकार नारद आ गए। बड़ी संख्या में देवताओं को देख उन्होंने नारायण की और देखा और इसका औचित्य पूछा. प्रिय भक्त को देख प्रसन्न विष्णु भगवान् ने नारद को वस्तु स्थिति बताई. सहसा नारद चौंक पड़े. उन्होंने बताया की अभी वे भारत वर्ष से ही आ रहें हैं. उन्हें तो ऐसी कोई दुर्दशा नहीं दिखी. जगह-जगह मॉल बन रहे हैं, पंच सितारा होटलों में दावतों का दौर जारी है. राजनेता और नौकरशाह अपनी कुर्सी बचा लेने के बाद विदेश यात्राओं में मग्न है. मंत्रालयों के एसी चेम्बरों में तरह-तरह की विकास योजनायें बन रही हैं. वहां तो सर्वत्र भोग-विलास का वातावरण हैं.



देवर्षि की विचित्र किन्तु आंशिक सत्य बातें सुनकर देवगुरु खड़े हुए। उन्होंने कहा 'हे नारद आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं. लेकिन आप स्वयं ही बताएं इन भोगी-विलासी लोगों में से कितने लोग मानवता की राह पर चल रहे हैं? इनमें से कितने लोग सच्चे मन से हमारी पूजा करते हैं? तभी अचानक जासूस देव अपने हाथ में रिपोर्टों की एक फाइल लेकर खड़े हुए। नारद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा " हे देवर्षि! आप स्वयं महाज्ञानी हैं. लेकिन लगता है की आप भी धरती पर सिर्फ विशेष लोगों की खबर लेने के लिए ही जाते हैं. हमारे पास गुप्त सूचना है की अधिकांश शासनाधिकारी शैतान की पूजा करते हैं. लोगों का खून चूसकर अपनी जैबे भरते हैं. और स्वर्ग की तर्ज पर प्रत्येक स्थान पर मॉल स्वर्ग बनाने की ख्वाहिश रखते हैं. आम जनता, जो हमारी पूजा सच्चे मन से करती है उसे महंगाई से मारने की साजिश इन्ही के सहयोग से रची गयी है, जिससे देवताओं को उनका यज्ञ भाग न मिले और वे कमजोर हो सके." जासूस देव की तथ्यपरक बातों से देवर्षि निरुत्तर हो गए.


तभी एक देवता ने जासूस देव से कहा " हे देव! मैंने तो सुना है की भारत देश का राजा बड़ा ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है? उसने इस स्थिति को सुधारने का प्रयत्न नहीं किया?" जासूस देव ने कहा "हे देव! सुना तो मैंने भी ऐसा ही था। लेकिन नयी जानकारी के अनुसार चुनाव जीतने के बाद बनी नयी मंत्रिपरिषद उसने लोकसभा से जिन ६४ सांसदों को मंत्री बनाया है उनकी कुल घोषित संपत्ति ही ५०० करोड़ से अधिक है. अतः उसे इस महंगाई का एहसास कैसे हो सकता है."

अभी विमर्श अपने उच्चतम सोपान पर पहुँचने ही वाला था की अचानक नंदी (भगवान शिव की सवारी) दौड़ते हुए आये. उन्होंने सूचना दी की ग्लोबल वार्मिंग से हिमालय के ग्लेसियर पिघलने लगे हैं. अब कैलाश पर रहना सुरक्षित नहीं है. शीघ्र ही निवास स्थान बदलना होगा. यह सुनते ही भगवान् शिव क्रोध से भर गए. उन्होंने राक्षसों और अपकारी शक्तियों के इस कृत्य पर भीषण गर्जना की. सभी देवता बड़ी आस भरी निगाहों से संहारकर्ता भगवान् शिव की और देखने लगे कि कब वे इन दुष्ट अपकारी शक्तियों और उनके सहयोगी भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और स्वार्थी उद्योगपतियों का संहार कर उन्हें एवं उनके आम नागरिक रुपी भक्तों को राहत दिलाएंगे?

Thursday, July 16, 2009

खबर का असर, इन्द्र ने कराई बारिश

"जी हाँ आज की सबसे बड़ी खबर एक्स वाय जेड न्यूज़ के खुलासे के बाद देवलोक में मचा हड़कंप। आनन-फानन में देवराज इन्द्र ने मीटिंग बुलाई है । इस मीटिंग में बादल को बर्खास्त करने की एक्सक्लूसिव जानकारी भी सिर्फ हमारे चैनल पर ही है." चीखते-चीखते एंकर ने कहा सबसे पहले उसी के चैनल ने दिखाया था कि देवलोक की कार्यप्रणाली में खोट है. किस तरह से बादल जैसे छोटे देवता भी इन्द्र की अनदेखी कर देते हैं. उसने दर्शकों से रात आठ बजे प्राइम टाइम स्पेशल ' स्वर्गलोक में मचा हड़कंप' देखने का आदेशनुमा आग्रह किया।




इस सनसनीखेज चैनल को देख रहे अधिकांश दर्शक मन ही मन सोच रहे थे कितना जबरदस्त चैनल है यह. इसकी खबर से तो देवलोक में भी हड़कंप मच जाता. और इसके पास स्वर्ग लोक की बैठक में क्या होने वाला है इसकी भी खबर पहले से ही है. यह सोचते-सो़चते दर्शक रात होने का इन्तजार करने लगे. देवलोक में फ़ैली अफरा-तफरी की खबर से विज्ञापन जगत की गतिविधियाँ तेज हो गयी. बड़े-बड़े ब्रांड अपने विज्ञापन दिखने के लिए एक्स वाय जेड न्यूज़ के फोन घुमाने लगे और प्राइम टाइम स्पेशल के लिए अपनी-अपनी बुकिंग करनी शुरू दी।



दूसरी और देवलोक में नृत्य और सोमरस का दौर चल रहा था। अप्सराएँ मधुर संगीत पर थिरक रही थी। नृत्य समाप्त होने पर सभी देवता एक स्वर से वाह-वाह कर ही रहे थे की नारायण-नारायण की ध्वनि से स्वर्ग लोक गूँज उठा।इस नारायण-नारायण जाप से देवेन्द्र सिहर उठे। यह देवर्षि नारद की आवाज थी. अक्सर नारद किसी दैत्य के हमले की ही सूचना लाते थे. इसलिए देवता आपस में खुसर-फुसर करने लगे।


देवर्षि का अभिवादन कर इन्द्र ने उनके आगमन का उद्देश्य पूछा। वैदिक पत्रकार नारद ने बोला " हे देवेन्द्र मुझे सूचना मिली है की बादल को बर्खास्त करने के लिए आप एक बैठक आयोजित करने जा रहे हैं. क्या आपने इसकी सूचना मुझे देना जरूरी नहीं समझा. और सबसे बड़ी बात देवेन्द्र! मेरे रहते हुए. यह बात मृत्युलोक के पत्रकारों तक कैसे पहुँच गयी." यह कहते-कहते नारद की आवाज तल्ख़ हो गयी. नारद के प्रश्नों से हतप्रभ देवेन्द्र ने कहा "यह आप क्या कह रहे हैं देवर्षि! मैंने तो ऐसी कोई मीटिंग नहीं बुलाई है. बादल तो मेरा परम सहयोगी है. मै भला उसे नौकरी से क्यों निकालूँगा. और आपको ऐसी सूचना किसने दे दी।"


नारद ने चकित होते हुए कहा" देवेन्द्र मेरे पास यह सूचना सीधे मृत्युलोक से आयी है। वहां के एक खबरियां चैनल ने इसकी एक्सक्लूसिव जानकारी होने का दावा किया है." फिर थोडी देर सोच कर नारद ने कहा आप उचित ही कह रहें हैं देवराज. भला मेरे सिवाय स्वर्ग लोक की कवरेज करने की योग्यता और साहस किसमे हैं! मैंने आजतक किसी अन्य रिपोर्टर को यहाँ नहीं देखा. लेकिन यह अफवाह पृथ्वी पर फैली कैसे? इससे तो पृथ्वी पर देवलोक की छवि खराब हो रही है? रिपोर्टरों ने स्वर्ग की एक्सक्लूसिव खबर की अफवाह फैला कर स्वयं को देवताओ की श्रेणी में रखने का प्रयत्न किया है? यदि ऐसा ही चलता रहा देवेन्द्र! तो वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य देवताओ के बदले इन रिपोर्टरों की पूजा करने लगेगा।"


नारद के प्रवचनों से सभी देवता व्यथित हो उठे। मंथन का दौर शुरू हो चला. देवतागण अपने-अपने सुझाव देने लगे. देवताओ में इन्द्र की निगाहों में अपने नंबर बढ़ाने के लिए होड़ मच गयी. कोई कहता देवेन्द्र को एक्स वाय जेड चैनल के हेड क्वार्टर पर वज्रास्त्र चला देना चाहिए तो कोई कहता इसके प्रोडयूसर्स और चैनल हेड को स्वर्ग के कारागाह में भेज देना चाहिए. इस चिल्पोह के बीच सहसा देवगुरु बृहस्पति खड़े हुए. उन्होंने देवन्द्र से कहा की पृथ्वी लोक में जब किसी नेता-अभिनेता पर ऐसे आरोप लगते हैं तो वह प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर इसका खंडन करता है. अतएव बादल को भी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलानी चाहिए." देवगुरु के प्रस्ताव देते ही सभी की निगाहें बादल को ढूँढने लगी, लेकिन. इन्द्र न वह सभा से नदारद था. इन्द्र ने अपने खुफिया प्रमुख से बादल की स्टेटस पूछी. जासूस देव ने कहा" देवराज बादल मृत्युलोक में पहुँच चुके हैं और वे किसी भी पल बरस सकते हैं. हालाँकि इस बार उन्हें पहुँचने में २५ दिन की देरी हुई है." देवराज ने जासूस देव से बादलों की देरी की वजह पूछी. जासूस देव ने कहा" देवराज हर वर्ष होने वाला वार्षिक नृत्य-उत्सव इस बार अपने नियत समय से २५ दिन पहले शुरू हुआ है. बादल बरसों से इस उत्सव का आनंद उठाने से वंचित रहा था. उत्सव का लुत्फ़ उठाने के बाद ही वह यहाँ से विदा हुआ।"


देवता फिर चिंता में पड़ गए। अंततः इन्द्र कि सरपरस्ती वाली त्रि-सदस्यीय कमेटी का गठन हुआ जिसमे नारद और बृहस्पति भी शामिल थे. इन्द्र ने वज्रास्त्र चलाने का सुझाव दिया. इस पर नारद ने समझाया की इससे पूरी मीडिया आपके पीछे पद जायेगी और आपकी बड़ी बदनामी होगी. मीडिया इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करार देगा और जनता का विश्वास देवताओ से उठ जायेगा. काफी विचार-विमर्श के बाद कमेटी ने सर्वसम्मति से चैनल के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज करने का फैसला किया. लेकिन कोर्ट के उबाऊ पचडे में पड़ने से पहले बातचीत के जरिये हल निकालने कि कोशिश करना भी तय हुआ।


उधर इन सब बातो से बेखबर बादल बड़ी तेजी से बरसने के इरादे से दिल्ली और मुंबई के आसमान पर छा गया। प्रोग्राम के ठीक पहले इन दोनों महानगरों में जम कर बारिश हो गयी. इसका असर एक्स वाय जेड के न्यूज़ रूम में देखने को मिला. शाम आठ बजे कि विशेष पेशकश स्वर्ग में मचा हड़कंप की पैकेजिंग पूरी हो चुकी थी. इसके सभी स्क्रिप्ट राइटर कैफेटेरिया में बैठकर आराम फरमा रहे थे. तभी बॉस का फरमान मिला 'सभी गधे तुंरत न्यूज़ रूम में हाजिर हों.' बॉस ने तुंरत नए सिरे से स्क्रिप्ट लिखने को कहा और पैकज का एंगल बताया 'एक्स वाय जेड की खबर का असर इन्द्र ने घुटने टेके. जमकर बरसे बादल, लोगों को मिली राहत.' एक नौसिखिये स्क्रिप्ट राइटर ने आपत्ति की कि इसमें इन्द्र के घुटने टेकने वाली कौन सी बात है सर. यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है. आखिर कब तक इस तरह की आधारहीन बकचोदी करते रहेंगे.? बॉस ने माँ-बहन कि गाली देते हुए कहा 'जितना कहा जाये उतना ही करों. कौन से इन्द्र देव इसका खंडन करने आ रहे है. और सुनो उस काल-कपाल टाईप के बाबा को भी बुला लेना समझे. वह पैकेज की जरूरत के हिसाब से ही बकता है।'


रात आठ बजे दर्शकों ने एक्स वाय जेड न्यूज़ लगाया। विशेष पेशकश शुरू हो चूकी थी. चिल्ला-चिल्ला कर बोलने में माहिर एंकर और तिलकधारी काले कपडे पहने हुए एक बाबा जी दिखाई दे रहे थे. बाबा के गले में कई तरह कि मालाये थी. एंकर ने बाबा से सवाल पूछा 'बाबा आखिर आज बादल बरसे कैसे?' बाबा ने कहा 'उन्हें दिव्य शक्तियों ने बताया है की आपके चैनल की खबर से देवलोक में विद्रोह की स्थिति आ गयी है. भारी दबाव में इन्द्र ने बारिश कराया है।'


बकवास सवालों का दौर यू ही चलता रहा। दर्शक एक-टक से चैनल देख रहे थे. तभी न्यूज़ रूम में फोन घनघनाया. फोन करने वाले व्यक्ति ने स्वयं को देवराज इन्द्र बताया. पहले तो चैनल हेड थोडा घबराया पर जल्द ही संभलकर बोला 'हाँ देवन्द्र फरमाईये! मै आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ?' इन्द्र ने कहा 'यह क्या बकवास लगा रखा है? तुम्हारी खबर का आधार क्या है? स्वर्ग मै किसी तरह का हड़कंप नहीं मचा है. सभी देवता आपका काम ठीक कर रहे हैं और किसी को बर्खास्त नहीं किया जा रहा है. तुम अपनी खबर का खंडन करों नहीं तो मै तुम्हारे खिलाफ मानहानि का दावा करूँगा.' चैनलों मै इस तरह की धमकी अक्सर आती रही है. अतः चैनल हेड पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ा. उसने उल्टा इन्द्र को ही धमका दिया तुझे केस करना है तो कर ले. मेरे पास वकीलों की फौज है. फिर इन्द्र ने लालच देना शुरू किया ' खबर का खंडन कर ले. मृत्यु के बाद तो तुझे स्वर्ग ही आना हैं न. मै तेरा यहाँ बहुत अच्छा ख्याल रखूँगा.' चैनल हेड ने कहा ' कौरे आश्वासन क्यों देते हो इन्द्र. व्यक्ति को उसके कर्म के हिसाब से ही स्वर्ग या नरक मिलता है. मैंने बतौर चैनल हेड इतने पाप किये हैं की मुझे स्वर्ग कभी मिल ही नहीं सकता. और अब फोन रखों, नहीं तो उस भ्रष्ट संचार मंत्री से मेरी गहरी दोस्ती है, उससे कह कर तुम्हारा फोन कटवा दूंगा. हाँ अगर कोई उर्वशी, रम्भा और मेनका तीनों मुझे सौपों तो मै विचार करूँगा.' बेचारे देवेन्द्र अपनी प्रेमिकाओं को छोड़ने के लिए कैसे तैयार होते? सौदा न पटा. देवताओं का राजा सर्वशक्तिमान इन्द्र भारत भूमि की इस नवीन शक्ति के आगे नतमस्तक हो गया. उसे सूझ नहीं रहा था कि अपना सम्मान बचाने के लिए वो करे तो क्या करे?

Wednesday, January 21, 2009

लगाम के डर से बिदका घोड़ा

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है एक आजाद मीडिया। पर भारत में इस आजादी की सीमा क्या है ? यह स्पष्ट नहीं है। शायद इसी का फायदा उठाकर इस स्वघोषित (संविधान में सिर्फ़ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को ही स्तम्भ कहा गया है) चौथे स्तम्भ ने समाज के प्रत्येक वर्ग में अपनी अपनी दखल दी। लोकतंत्र के अन्य सभी स्तंभों की सीमा और अधिकार की व्याख्या संविधान में मिलती है लेकिन मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ही एक सब-सेक्शन (१९-A) में समेट दिया गया है। प्रेस की गतिविधियों की निगरानी के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया जैसी संस्थाएं हैं। अभी हाल ही में केन्द्र सरकार ने विजुअल मीडिया की सीमा स्पष्ट करने के लिए कानून का मसौदा तेयार किया है। इससे मीडिया जगत की भौहें तन गयी हैं और इस काननों को रुकवाने के लिए हर स्तरसे प्रयास शुरू कर दिया गया है।

आखिर ऐसी स्थिति आयी क्यों ? इस पर विचार करने की जरूरत है। मीडिया और केन्द्र सरकार के बीच ताजातरीन विवाद मसौदे के उस हिस्से के मुद्दे पर है जिसमें किसी दंगे अथवा किसी ऐसी कार्रवाई जहाँ पुलिस या सेना तैनात हो के लाइव फुटेज पर पाबन्दी का प्रावधान है. सरकार का पक्ष है की लाइव कवरेज से आतंकी अथवा वे शरारती समूह जो तनाव भड़काना चाहते है उनको लाभ मिलता है. मीडिया सरकार के इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार मान रही है. मीडिया के सरपरस्तों को इस बात पर भी आपत्ति है की कोई एसडीएम रैंक का अधिकारी मीडिया-कर्मियो को ऐसी घटना के कवरेज से रोक सकता है जो उसकी निगाह में तनाव अथवा हिंसा भड़काने वाला हो. इस पहलू पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है. डीएम अथवा एसडीम अधिकारी बनने के लिए एक बेहद प्रतिस्पर्धी काम्पीटीसन को पास करना होता है. इस्सके बाद एक उच्च स्तरीय ट्रेनिंग भी हासिल करनी होती है जो प्रशासन के सभी पहलूओ में उन्हें दक्ष बनाने में सहायक होता है. दूसरी और वे पत्रकार होते हैं जिनकी नियुक्ति कैसे हुयी है? उनकी ट्रेनिंग कैसी है? क्या वे पत्रकारिता के एथिक्स जानते भी है? इसके बारे में पब्लिक को न के बराबर जानकारी होती है. शायद मीडिया की नियुक्तियों में वो पारदर्शिता नही है जो एक नौकरशाह की नियुक्ति में होती है।

आजाद भारत में स्थितियां बदल गयी हैं. गुलामी के वक्त अधिकांश अखबरों में राष्ट्रवादी व्यक्ति काबिज थे और उद्देश्य राष्ट्रसेवा था. देश की प्रगति ने मीडिया को शीघ्र ही एक उद्योग में तब्दील कर दिया. किसी भी अन्य उद्योग की तरह इस उद्योग से जुड़े पूंजीपतियों का भी मैन टारगेट पैसा कमाना है. आज की तारिख में देश के कई प्रतिष्टित व्यवसायिक घराने अपना चैनल या अखबार खोलने की जुगत में भिडे हैं. यह उन्हें न केवल पैसा देता है बल्कि बिज़नस इंटेरेस्ट को को साधने का अवसर भी देता है. फिलहाल देश में कई ऐसे तथाकथित मीडिया घराने है जिनका मुख्य बिज़नस चैनल या न्यूज़-पेपर न होकर कुछ और ही है ( मसलन चीनी उद्योग, दिस्तिल्लेरी, फैशन इंडस्ट्री सहित बहुत कुछ ) ऐसे मीडिया हाउस आजादी का ग़लत लाभ उठाकर अपने अन्य उद्योगे के मुफीद पॉलिसी बनवाते हैं. मीडिया का काम तथ्यों के साथ बिना किसी परिवर्तन के सूचना पब्लिक तक पहुंचाना होता है. लेकिन आज की मीडिया अपना व्यू पब्लिक पर थोपती है. पब्लिक वैसा ही सोचती है जैसी सूचना उसके सामने रखी जाती है।
मीडिया बहुत से लोगों को पब्लिक फिगर बताकर उनके व्यक्तिगत जीवन में जीभरकर हस्तछेप करती है. चैनल ने तो पत्रकारिता की नई विधा का ही इजाद कर दिया है जो जनहित या जनरुचि से कहीं आगे बढ़कर लोगों को डराने में यकीन रखती है. इस सनसनीखेज पत्रकारिता का नमूना हम कई बार देख चुके हैं. इसका उल्लेखनीय उदाहरण हम कमोबेश रोज देखतें है. हाल ही में मुंबई एटीएस ने उत्तर प्रदेश के एक हिंदूवादी नेता को गिरफ्तार किया. इस घटना के पहले मीडिया के पास सिर्फ़ इतनी ही सूचना थी कि यूपी के एक हिंदूवादी नेता को मुंबई एटीएस गिरफ्तार करने वाली है. सनसनीखेज बनने के लिए देश के स्वघोषित पहरेदारों ने अफवाह फैलाई कि संसद आदित्यनाथ को गिरफ्तार करेगी मुंबई एटीएस. बाद की घटना सभी को मालूम है. और जिस तरह से मीडिया के एक बहुत बड़े सेक्शन ने आरुषि हत्याकांड की रिपोर्टिंग की उससे बड़ी गैर जिम्मेदारी और क्या हो सकती है. और टीआरपी रेस में आगे निकलने के लिए जिस तरह से नाग-नागिन. आवश्यकता से अधिक ज्योतिष और पुनर्जन्म सहित कई अन्धविश्वासी कार्यक्रम दिखा रहे हैं. इस टीआरपी की रेस में चैनलों के रहनुमाओं को किसानो की समस्या नजर नही आती है बल्कि राजू श्रीवास्तव की कमेडी से पैसे बनाने की फिक्र है.
भाई-भतीजावाद सहित अन्य वे सभी बुराइयाँ का मीडिया में उतना ही मजबूत वजूद है जितना की मीडिया दूसरे सेक्टरों में दिखाती आयी है. शायद ये ख़ुद का स्टिंग ओपरेशन करने और उसे दिखाने की हिम्मत नही रखते हैं.


लेकिन इस अपरिपक्व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ अच्छे पहलू भी है। जनहित से जुड़े बहुत से मुद्दे पर बेहतरीन रिपोर्टिंग से पब्लिक को फायदा भी मिला है। प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के खाते में कैश फॉर वोट, ओपरेशन दुर्योधन, बंगारू लक्ष्मन पर्दाफाश, बोफोर्स कांड का पर्दाफाश सहित मानवीय आपदा के वक्त के गयी रिपोर्टिंग है जिनपर मीडिया कर्मी गर्व कर सकते हैं. इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू, जनसत्ता, सीएनएन- आईबीएन और टाईम्स नॉव एइसे ग्रुप हैं जिन्होंने कई अवसरों पर आला दर्जे की रिपोर्टिंग की है और पत्रकारिता के आदर्शों को और ऊँचा किया है.मीडिया सेल्फ रेगुलेशन की बात कई सालों से बात करती आयी है. मुंबई कांड पर हुई आलोचनाओ से नींद से जागी ब्रॉड-कास्टर असोसिअशन ने जो कोड ऑफ़ कंडक्ट घोषित किए हैं उनमे से अधिकांश सरकारी मसौदे में है. स्वस्थ पत्रकारिता करने वालों को यह सरकारी प्रस्ताव अपने अधिकारों पर कुठाराघात लग रहा है, जो की एक सीमा तक ही जायज प्रतीत होता है. मीडिया के भेष में छिपे धन्नासेठों की कारगुजारियों को रोकने के लिए सरकार का प्रस्ताव सराहनीय है. मीडिया को अपनी बुरईयों को दूर करने के लिए अपनी कार्यप्रणाली में और नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने की जरूरत है ताकि मीडिया आम पब्लिक की निगाहों में अपने चौथे स्तम्भ के रुतबे को बरकरार रख सके.



धैर्य पूर्वक पढने के लिए शुक्रिया.

-शांतनु